Sainthwar-Malla Population and the politics behind their name
सैंथवार-मल्ल जाति, पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक ऐसी जाति है, जिसके राजनेता नहीं चाहते है की इस जाति को उसके मूल नाम "सैंथवार और मल्ल" से आरक्षण मिले। इन नेताओ के अनुसार "सैंथवार-मल्ल" नाम से जो लोग आरक्षण चाहते है वह सभी लोग सैंथवार-मल्ल क्षत्रिय है। क्षत्रियों को आरक्षण नहीं मिल सकता है। इसलिए उसी सैंथवार और मल्ल को आरक्षण मिलेगा जो स्वयं को शपथ पत्र द्वारा कुर्मी-सैंथवार और कुर्मी-मल्ल घोषित करेगा। जो लोग शपथ पत्र दाखिल नहीं करते हैं, ऐसे सभी सैंथवार और मल्ल क्षत्रिय है और उन्हें पिछड़े वर्ग में नहीं रखा गया है।
नेताओ द्वारा दी गयी यह दलील, और पूर्व में भी सन 1994 - 1999 में राज्य पिछड़ा आयोग अध्यक्ष श्री रामसूरत सिंह (स्वयं कुर्मी) द्वारा इस दलील को मान लेने, का अर्थ यह हुआ की पुरे भारत वर्ष में सैंथवार-मल्ल जाति एक ऐसी अनोखी जाति है जिसकी आबादी क्षत्रिय भी है और कुर्मी भी है। सुनने में यह विचित्र बात लगती है, लेकिन बिलकुल सही है। मूल नाम से आरक्षण पर, सूचना के अधिकार के तहत, पिछड़ा वर्ग कल्याण, उत्तर प्रदेश शासन से सूचना माँगने पर 9 पन्नों का उत्तर मिलता है जिसमें साफ़ साफ़ लिखा है की पिछड़ा वर्ग आयोग, उत्तर प्रदेश ने सैंथवार-मल्ल जाति (और अन्य 16 जातियों) को उसके मूल नाम से आरक्षण देने की पहल की थी लेकिन इसी जाति के कुछ लोगो ने सन 2014 में इसका विरोध कर इस पहल को ख़ारिज करा दिया है। इन सभी लोगों के नाम और आयोग के पहल को ख़ारिज करने के लिए उनके द्वारा दिए गए विचित्र तर्क का उल्लेख इस पत्र में हैं।
लगभग 2500 साल से भी अधिक समय तक, एक आबादी से जुड़ी उसकी मूल सामाजिक पहचान "सैंथवार-मल्ल" को पूरी तरह से मिटाने के लिए, इस तरह की दलील देने और उसे शासनादेश बनाने के पीछे उन चंद लोगो का इरादा वाकई में सैंथवार-मल्ल समाज की भलाई करना था या अपने राजनैतिक जीवन में मात्र फायदा पाना था, यह गौर करने वाली बात है। इससे पहले इन बातों की गहराई को समझा जाये, उस 9 पन्नों के उत्तर में किन-किन बातो का उल्लेख है, वह देखते है -
लगभग 2500 साल से भी अधिक समय तक, एक आबादी से जुड़ी उसकी मूल सामाजिक पहचान "सैंथवार-मल्ल" को पूरी तरह से मिटाने के लिए, इस तरह की दलील देने और उसे शासनादेश बनाने के पीछे उन चंद लोगो का इरादा वाकई में सैंथवार-मल्ल समाज की भलाई करना था या अपने राजनैतिक जीवन में मात्र फायदा पाना था, यह गौर करने वाली बात है। इससे पहले इन बातों की गहराई को समझा जाये, उस 9 पन्नों के उत्तर में किन-किन बातो का उल्लेख है, वह देखते है -
1) दिनांक 29-01-2009 और 06-05-2010 को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा 17 जातियों
के बारे में आरक्षण सूची में संसोधन / नई प्रविष्टि (modifications / new entry) के
लिए राज्य सरकार को संस्तुति पत्र जारी करना (देखे पेज -1)
2) दिनांक 29-01-2012 को राज्य सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग से इन सभी जातियों का इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ केस में तय किये गए मापडंडो / मानकों के अनुरूप रिपोर्ट बना पुनः संस्तुति देने के लिए आदेश जारी करना (देखे पेज -1)
3) दिनांक 24-03-2014 को मूल नाम से आरक्षण प्राप्त करने हेतु चल रहे केस में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला देना की "आरक्षण से संबंधित फैसला करने का अधिकार सिर्फ पिछड़ा वर्ग आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है और राज्य सरकार उसे मानने के लिए बाध्य है" | इस फैसले का तात्पर्य यह भी है की माननीय उच्च न्यायालय आरक्षण सूची में संशोधन या नई प्रविष्टि के बारे में कोई फैसला नहीं कर सकती है। वह सिर्फ इस मामले में होनेवाली प्रक्रिया को लागु करने के लिए आदेश दे सकती है जिससे आवेचक को न्याय मिलने में देरी न हो। (देखे पेज-3)
4) दिनांक 13-11-2014 को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा "सैंथवार-मल्ल" मूल नाम से आरक्षण पर सुनवाई शुरू जिसमे मूल नाम से आरक्षण के समर्थन में श्री विजय शंकर सिंह कौशिक और श्री पूरन मल्ल शामिल थे। मूल नाम से आरक्षण लेने के विरोध में सैंथवार-मल्ल महासभा की तरफ से श्री जी.एम्. सिंह, श्री विजय पाल सिंह सैंथवार, श्री आर. ए. सिंह सैंथवार, श्री जय प्रकाश, श्री मदन मोहन कटियार (???) और डॉ. आर. के. वर्मा (???) शामिल थे। इसके अलावा विरोध में श्री धनंजय सिंह एडवोकेट, श्री हरी शंकर, श्री सी.पी. सिंह और कुछ अन्य लोग भी शामिल थे। (सैंथवार-मल्ल महासभा में क्या कटियार या वर्मा भी सदस्य है??? अगर यह लोग सदस्य है तो क्या सैंथवार-मल्ल महासभा वाकई में सैंथवार और मल्ल जाति की है ??) (देखे पेज -4, 5)
5) मूल नाम से आरक्षण विरोधी पक्ष द्वारा इस प्रक्रिया के विरोध में पूर्व (सन 1994 से 1999 के बीच) में दी गयी दलीलों का उल्लेख (देखे पेज -6, 7)
6) सुनवाई के बाद पिछड़ा वर्ग आयोग का फैसला (देखे पेज - 7, 8)
2) दिनांक 29-01-2012 को राज्य सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग से इन सभी जातियों का इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ केस में तय किये गए मापडंडो / मानकों के अनुरूप रिपोर्ट बना पुनः संस्तुति देने के लिए आदेश जारी करना (देखे पेज -1)
3) दिनांक 24-03-2014 को मूल नाम से आरक्षण प्राप्त करने हेतु चल रहे केस में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला देना की "आरक्षण से संबंधित फैसला करने का अधिकार सिर्फ पिछड़ा वर्ग आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है और राज्य सरकार उसे मानने के लिए बाध्य है" | इस फैसले का तात्पर्य यह भी है की माननीय उच्च न्यायालय आरक्षण सूची में संशोधन या नई प्रविष्टि के बारे में कोई फैसला नहीं कर सकती है। वह सिर्फ इस मामले में होनेवाली प्रक्रिया को लागु करने के लिए आदेश दे सकती है जिससे आवेचक को न्याय मिलने में देरी न हो। (देखे पेज-3)
4) दिनांक 13-11-2014 को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा "सैंथवार-मल्ल" मूल नाम से आरक्षण पर सुनवाई शुरू जिसमे मूल नाम से आरक्षण के समर्थन में श्री विजय शंकर सिंह कौशिक और श्री पूरन मल्ल शामिल थे। मूल नाम से आरक्षण लेने के विरोध में सैंथवार-मल्ल महासभा की तरफ से श्री जी.एम्. सिंह, श्री विजय पाल सिंह सैंथवार, श्री आर. ए. सिंह सैंथवार, श्री जय प्रकाश, श्री मदन मोहन कटियार (???) और डॉ. आर. के. वर्मा (???) शामिल थे। इसके अलावा विरोध में श्री धनंजय सिंह एडवोकेट, श्री हरी शंकर, श्री सी.पी. सिंह और कुछ अन्य लोग भी शामिल थे। (सैंथवार-मल्ल महासभा में क्या कटियार या वर्मा भी सदस्य है??? अगर यह लोग सदस्य है तो क्या सैंथवार-मल्ल महासभा वाकई में सैंथवार और मल्ल जाति की है ??) (देखे पेज -4, 5)
5) मूल नाम से आरक्षण विरोधी पक्ष द्वारा इस प्रक्रिया के विरोध में पूर्व (सन 1994 से 1999 के बीच) में दी गयी दलीलों का उल्लेख (देखे पेज -6, 7)
6) सुनवाई के बाद पिछड़ा वर्ग आयोग का फैसला (देखे पेज - 7, 8)
a) आयोग पहला फैसला देती है की "सैंथवार-मल्ल" जाति को आरक्षण सूची में
नए क्रमांक पर रखना नई प्रविष्टि न हो सिर्फ संसोधन मात्र है। इसलिए इस मामले में इंदिरा
साहनी बनाम भारत संघ केस में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा तय किये गए मापको के अनुसार
रिपोर्ट बनाने की जरुरत नहीं है। (देखे पेज - 7 अंतिम लाइन और पेज 8 पहली दो लाइन) (यह अपने आप में आयोग का एक महत्वपूर्ण फैसला है जो तय करती है की सैंथवार-मल्ल नाम
से आरक्षण प्राप्त करना आरक्षण सूची में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सिर्फ संसोधन मात्र
का कार्य है।)
b) पिछड़ा आयोग दूसरा फैसला देती है की मूल नाम से आरक्षण के आवेचक "सैंथवार-मल्ल"
जाति के एक स्वतंत्र जाति के रूप में होने का कोई ठोस साक्ष्य नहीं दे पाए है। इसलिए
विरोधी पक्ष की बात मानते हुए, आरक्षण सूची में संसोधन कर नए क्रमांक पर" सैंथवार-मल्ल"
नाम दर्ज करने के आवेदन को वह ख़ारिज करती है। इस संबंध में वह शासन को सूचित कर देगी।




